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28 Oct 2024 · 1 min read

मेरी अनलिखी कविताएं

मेरी अनलिखी कविताएं
—————————
वह प्रारम्भिक युग था,
सभ्यताओं में संस्कृतियाँ विकसित हुई थी।
ध्वनियों से विकसित हो चुके थे स्वर।
स्वर से भाषा।
चाँद का सौन्दर्य अनकहा था।
मेरा संघर्ष अनगढ़ा था।

आसमान अबूझ देवताओं से पटा पड़ा था।
धरती चुनौती सा बिखरा हुआ था।
मैं इनपर कविताएं लिखना चाह था।
जीवन से जोड़कर इन्हें व्याख्यायित करना
चाहता था।
छोटी अवधि का जीवन खुद को खोज न
पा रहा था।

युगों बाद मैं यहाँ अपनी कविताएँ
कहने आया हूँ।
पढ़ना जरूर।
अवसाद से मुक्ति चाहता हूँ।
मेरा कवि मन तुम्हें देना चाहता हूँ।
गढ़ना जरूर।
कहने की नई,पुरानी विधाओं में
रहना चाहता हूँ।
मढ़ना जरूर।
————————————————–17/10/24

Language: Hindi
146 Views
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