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21 Oct 2024 · 1 min read

घोटुल

मुरिया जनजाति की पावन परम्परा
विलुप्त हो रही आज,
लकड़ी-मिट्टी से बने घोटुल में होते
नवजीवन का आगाज।

शिक्षा मनोरंजन के साधन गजब का
जहाँ संगीत पर थिरकते पाँव,
गॉंव के चेलिक औ’ मोटियारिनों का
सांझ से होते जुड़ाव।

सारी रात बिताते साथ-साथ
जीवनसाथी भी चुनते,
प्रीत के बन्धन में बन्ध करके
भावी जीवन के सपने बुनते।

बस्तर में है सदियों से प्रचलित
गजब का यह रिवाज,
वो दौर कबके देख चुके हैं जिसके
पीटते ढिंढोरा पश्चिम समाज।

घोटुल की आज प्रासंगिकता यही
होता बलात्संग का निषेध,
पुलिस थानों में दर्ज न मिलेगा
बलात्संग का कोई केस।

(मेरी सप्तम काव्य-कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से..)

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
बेस्ट पोएट ऑफ दी ईयर 2023

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 100 Views
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