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20 Oct 2024 · 1 min read

लम्हे पुराने

दिल की गहराईयों में
तुम रहो इतना ,
विश्वास कभी मन का
दरकने नहीं पाये…
रंज और रंजिशों का
न हो गुजारा यहां ,
तेरा मुखड़ा ही
हर पल मुझे नजर आये…

मन की रुसवाईयों का
असर हुआ इतना,
गुजरा जमाना पलट कर
फिर सामने आया…
ख्वाहिशें मजबूर हुई फिर से
उन यादों में,
जब तूने मुझे
अपनी बाहों में सुलाया…

महक उठती थी फिजाएं
तुम्हारी रंगीन बातों में,
सुर्ख होंठों की गर्माहट
इश्क तुमने सुलगाया…
भींगे खुले जुल्फों का झटकना
लगता जैसे काली घटा अम्बर में,
तुम रहो तो संग करीब मेरे
मैंने फिर से,
उन लम्हों को पास है बुलाया…

मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २०/१०/२०२४ ,
कार्तिक , कृष्ण पक्ष,तृतीया ,रविवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ई-मेल – mk65ktr@gmail.com

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