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8 Oct 2024 · 1 min read

दोहा पंचक . . . . भूख

दोहा पंचक . . . . भूख

भूख लगे जब पेट को , कब भाता कुछ और ।
भूखे की बस चाहना, मिल जाऐं दो कौर ।।

क्षुधित उदर की वेदना, क्या जानें संसार ।
आँखों में बस तैरती, रोटी की मनुहार ।।

हर दौलत से है बड़ी, दो रोटी की चाह ।
बड़ी कठिन संसार में, पेट भरण की राह ।।

फुटपाथों पर भूख का, सजा हुआ बाजार ।
दो रोटी के वास्ते, तन बिकता सौ बार ।।

आते- जाते लोग सब, भिक्षुक का संसार ।
हर सिक्के के साथ में, मिले उसे दुत्कार ।।

सुशील सरना / 8-10-24

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