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6 Oct 2024 · 1 min read

आकर्षण और मुसाफिर

न जाने तुझे देख
इतना सुकुन.. क्यों मिलता
तुम्हें देखूं तो चित्त करता
देखता ही रहूं
तुम्हारी वाली बात
गैरों में कहां
तुम्हारी एक झलक के खातिर
ये नैन , क्यों तरशती रहती
ये सब होते हुए भी
मैं कोई कदम नहीं उठाता
क्योंकि मैं लम्बी सफर का
एक मुसाफिर हूं…

ये कल्पनाएं भी न
कहां कहां तक जा रही
उसकी चेहरा न जाने
मुझे, इतना क्यों भा रही
उसके संग ही न जाने
जीने का मन‌ क्यों करता
तुम जब नज़र न आती, तो
न जाने,‌ बेचैनी क्यों होती है
ये सब होते हुए भी
मैं कोई कदम नहीं उठाता
क्योंकि मैं लम्बी सफर का
एक मुसाफिर हूं

Language: Hindi
140 Views
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