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5 Oct 2024 · 2 min read

हमारे बुजुर्गो की वैज्ञानिक सोच

चलो हमारे बुजुर्गो की जीवन शैली पर थोड़ा विचार कर लेते है। तथाकथित आधुनिक कहलाने वाले बुद्धिजीवियों ने तो उनकी जीवन शैली के आधार पर उनको रूढ़िवादी ,या अल्पज्ञानी कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी । इसी कारण से आज की पीढ़ी उनके रहन सहन खान पान आदि से कोसो दूर चली गई है ,या जा रही है। परंतु प्रश्न उठता है कि वैज्ञानिकता या तर्किकिता के आधार पर वह लोग कितने खरे उतरते है। चलो मूलभूत आवश्यकताओं के आधार पर चिंतन करते है। मानव की तीन मूलभूत आवश्यकता में शामिल रोटी ,कपड़ा ,और मकान के आधार पर सोचे तो

रोटी या भोजन _रोटी या भोजन के मामले में बहुत प्राचीन की बात करे तो शाकाहार में कंद मूल फल ,एवम जांतव भोजन में मांसाहार , अंडे,दूध आदि का सेवन करते थे। जो कि सहज उपलब्ध हो जाता था ,एवम रख रखाव की जरूरत नहीं पड़ती थी। आसानी से पच भी जाता होगा। हां जांतव भोजन को पचाने में अथक परिश्रम की जरूरत पड़ती होगी , जो वह लोग करते भी थे। पानी पीने के लिए चर्म के मशक या सीप , सींग , तुम्बा , पेठा जेसेकोई फलों के खोल अधिक प्रयोग वह लोग करते होंगे।आखेट करना या खेती करना ,अपने से विशाल जानवरो से काम लेना कोई आसान नहीं रहा होगा। अकाल मृत्यु अलग बात थी ,अन्यथा बुझा मन और रोगैला तन बहुत कम पाया जाता होगा उनमें , थोड़ा उत्तरोत्तर आगे विकास की बात करे ,जब इंसान ने भोजन को पकाना सीख लिया था ,तब भी वो लोग बड़ा सात्विक भोजन किया करते थे , मिट्टी के बर्तन प्रयोग में लाया करते थे। जो को स्वास्थ्यप्रद हुआ करते थे आम धातुओं की तुलना में। सोने चांदी जैसी दुर्लभ धातुओं के मिलने तक वो लोग मृदाभांड का ही उपयोग लेते थे। आजकल के स्टील एल्यूमिनियम के बर्तन चलन में नही थे ,जबकि निकल , कॉपर आदि की खोज वो कर चुके थे। कारण वो अन्वेषी प्रकृति के लोग हुआ करते होंगे। और अन्वेषणा में भी स्वयं को शामिल करते थे। यानि अनुकूल प्रतिकूल परिणाम को स्वयं आत्मसात करते थे। और यही कारण है कि आज के विकसित युग में भी हम प्लास्टिक ,एबोनाइट आदि पदार्थों के कारण होने वाली दुर्दांत बीमारियों से बचने के लिए इनको छोड़कर मिट्ठी के बर्तनों की और लौटने लगे है।
इसी प्रकार भोजन मेभी हम हमारी पूर्व पीढ़ी के खानपान से प्रेरणा लेंकर उसे पुनः अपनानेकी दिशा में अग्रसर है।
क्रमश: ( अगले अंक में )
कलम घिसाई

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