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25 Sep 2024 · 1 min read

बग़ावत की लहर कैसे..?

बग़ावत की लहर कैसे..?
उठी आख़िर नज़र कैसे..?

कहाँ कब और, किधर कैसे..?
मचा है ये ग़दर, कैसे..?

बड़ी ज़ालिम ये दुनिया है
यहाँ अब हो गुज़र कैसे..?

मुझे मत आजमाओ अब
हूँ बस ज़िंदा, मग़र कैसे..?

समंदर में है तय मिलना
उफ़नती फिर नहर कैसे..?

है उसका क़ौल मिलने का
कटें ये दो-पहर कैसे..?

मुहब्बत इम्तिहां माफ़िक
करूँ मैं पास, पर कैसे..?

सबब इन हिचकियों का सब
ज़माने को ख़बर, कैसे..?

ये अंदर ग़म छुपाने का
मिला बोलो हुनर कैसे..?

ज़हर ख़ालिस अगर था तो
हुआ है बे-असर कैसे..?

नज़र भर देख कर उसने
दिया कर खाक़, पर कैसे..?

ख़ुदा ने ज़िंदगी बख़्शी
करूँ लेक़िन बसर कैसे..?

नहीं है इल्म लिखने का
मुक़म्मल हो बहर कैसे..?

ग़ज़ल में दिल निचोड़ा है
रही फिर भी क़सर कैसे..?

“परिंदे” रो पड़े यारो
जले ये सब शज़र कैसे..?

पंकज शर्मा “परिंदा”🕊

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