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24 Sep 2024 · 1 min read

यादों का बुखार

यादों का बुखार उतरा है कब।
इन यादों का ये नख़रा है सब ।

इस तरह रखती है ये, जकड़ कर
जैसे नन्हा चले,आंचल पकड़ कर।

बिना इनके सब का सूना जीवन
दिल में बसाये रखे ये तडपन।

कितना चाहा , फेंकू इन्हें नोच कर
रुक गये हाथ ,जाने क्या सोच कर।

फिर भी ,इनसे वीरां जीवन में बहार।
छोड़ न पाए ,इतना इनसे प्यार।

सुरिंदर कौर

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