बचाओं नीर
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
कुछ चोरों ने मिलकर के अब,
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
कविता - " रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है "
कल है हमारा
Kunwar kunwar sarvendra vikram singh
चमचा चमचा ही होता है.......
"आजकल औरतों का जो पहनावा है ll
मुझे किताबों की तरह की तरह पढ़ा जाए
बाण मां के दोहे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
*जीवन-पथ पर चल रहे, लिए हाथ में हाथ (कुंडलिया)*
जिंदगी जीने के दो ही फ़ेसले हैं
दिन - रात मेहनत तो हम करते हैं