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22 Sep 2024 · 1 min read

दोहा चौका. . . . रिश्ते

दोहा चौका. . . . रिश्ते

हृदय कुंड में विष भरा, नकली है मुस्कान ।
रौंद रहा है स्वार्थ में, रिश्तों को इंसान ।।

रिश्ते कागज पुष्प से, आज हुए निर्गंध ।
तार – तार सब हो गए,अपनेपन के बंध ।।

बदला युग के साथ में, रिश्तों का भी रूप ।
अपनेपन को लीलती, अब मतलब की धूप ।।

रिश्तों की तकलीफ में, होती है पहचान ।
साथ चले जो अंत तक, वो सच्चा इंसान ।।

सुशील सरना / 22-8-24

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