सारे जग को मानवता का पाठ पढ़ा कर चले गए...
तमस अमावस का घिरा, रूठा उजला पाख।
मां तेरे आंचल से बढ़कर कोई मुझे न दांव रहता है।
आप अगर अंबानी अडाणी की तरह धनवान हो गये हैं तो माफ करना साहब
आखिरी अल्फाजों में कहा था उसने बहुत मिलेंगें तेरे जैसे
जनता जाने झूठ है, नेता की हर बात ।
डिग्री ही संस्कार है उससे अनपढ़ रहोगे
एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हु
हर मौसम का अपना अलग तजुर्बा है
सुनो पहाड़ की...!!! (भाग - ९)
परिमल पंचपदी- नयी विधा
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
बाद के लिए कुछ भी मत छोड़ो
कुछ कमी मुझमे है कि इस जमाने में,
मेरी फितरत है बस मुस्कुराने की सदा
मोहब्बत मेरी जब यह जमाना जानेगा
*शादी के पहले, शादी के बाद*