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16 Sep 2024 · 1 min read

” कश्ती रूठ गई है मुझसे अब किनारे का क्या

” कश्ती रूठ गई है मुझसे अब किनारे का क्या
हाथों में सिर्फ लकीरें बची है अब सहारे का क्या ”
© डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया

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