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13 Sep 2024 · 1 min read

एक ग़ज़ल

क्या ये अंधेरों की परवरिश है
जो चाँद इतना चमक रहा है

कोई तो रिश्ता है रोशनी से
अंधेरा सदियों से संग खड़ा है

जो एक दिन छू लिया था तुमने
वो पतझड़ों में शज़र हरा है

हम अपनी धड़कन से थक गये
है सांसें छोटी या दिन बड़ा है

उदासियां क्यूँ हैं हर ख़ुशी संग
दिल लम्हे लम्हे से लड़ रहा है

सुना है मैदाने ज़िन्दगी में
कभी ख़ुशी का शहर रहा है

दिया था चुपके से मुठ्ठियों में
मेरा भरोसा कहाँ गिरा है

बड़ा है तन में, अड़ा है मन में
ये दर्द थोड़ा सा सरफिरा है

तुम्हारी यादों का एक जुगनू
है साथ लेकिन बुझा बुझा है

मगर प्रभू साथ चल रहे है
ये आसमानो का फैसला है

अगर में बिखरी हर एक ज़र्रा
स्नेह के रंग से ही भरा है
– क्षमा उर्मिला
#thebittispinkflower

Language: Hindi
132 Views
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