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12 Sep 2024 · 1 min read

*बरसातों में रो रहा, मध्यम-निम्न समाज (कुंडलिया)*

बरसातों में रो रहा, मध्यम-निम्न समाज (कुंडलिया)
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बरसातों में रो रहा, मध्यम-निम्न समाज
जीर्ण-शीर्ण छत देखकर, टपका पानी आज
टपका पानी आज, कहॉं पर सोऍं- जागें
पानी की है मार, छोड़ घर कैसे भागें
कहते रवि कविराय, कभी दिन में-रातों में
रोना ऋतु के साथ, हमेशा बरसातों में

रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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