Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Sep 2024 · 5 min read

#लेखन कला

#नमन मंच
#विषय लेखन कला
#शीर्षक गणेश चतुर्थी विशेष
#दिनांक ०९/०९/२०२४
#विद्या लेख

🙏 राधे राधे भाई बहनों 🙏
“लेखन कला”
लेखन कला के साप्ताहिक प्रोग्राम में हर सप्ताह आध्यात्मिक और सामाजिक विषय पर चिंतन और चर्चा करते हैं, संयोग से आज बुद्धि के दाता श्री गणेशजी महाराज का अवतरण दिवस भी है जिसे हम गणेश चतुर्थी के रूप में मनाते हैं, लेखन कला का श्रेय हमारे श्री गणेश जी महाराज को जाता है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सर्वप्रथम श्री गणेश जी महाराज ने ही वेद पुराणों को लिखना आरंभ किया, इसीलिए हम किसी भी नहीं चीज की शुरुआत करने से पहले या लिखने का आरंभ करने से पहले भगवान श्री गणेश का वंदन करते हैं !
चलो विषय पर आते हैं आज के चिंतन का विषय है ‘लेखन कला’
क्या होती है यह लेखन कला चलो समझने की कोशिश करते हैं !
लेखन कला मन की एक साधना होती है इंसान जो चाहे वह सोच सकता है लिख सकता है इसका मतलब यह नहीं कि जब मन चाहा लिख दिया जिस विषय पर जब चाहा लिख दिया यह बिल्कुल असंभव है !
क्योंकि इस मन के अंदर करोड़ों तरह के विचार और विषय चलते रहते हैं क्षण प्रतिक्षण विचार और विषय बदलते रहते हैं, जो विचार लेखक के मन में अभी उभरा है उस विचार को अगर चाहे कि मैं कल लिखूंगा वह संभव नहीं, इंसान की स्मरण शक्ति कितनी भी तेज क्यों ना हो फिर भी सभी विचारों को याद रख पाना और जब आपका मन चाहे तब उन विचारों को लिख पाना बड़ा ही मुश्किल काम है !
कभी-कभी वैचारिक प्रतिद्वंद्विता के कारण आपके स्मृति पटल से अनेक विचार और विषय गायब हो जाते हैं, यह बात सही है कि इंसान जो चाहे वो सोच सकता है जो चाहे वह कर सकता है भूतकाल मैं क्या हुआ और कैसे हुआ यह जान सकता है,
इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य मैं क्या होने वाला है उसके कल्पना चित्र को अभी उकेर सकता है !
और यह सब मुमकिन होता है परमात्मा की इच्छा से आपका इसमें कोई योगदान नहीं होता अगर कोई ऐसा सोचे कि मैंने लिखा मैंने किया मैंने जाना
यह आपका भ्रम है आपका अहंकार है और मेरी नजर में अहंकार ही विनाश का कारण है, आपकी इच्छा शक्ति और लगन को देखकर यह परमात्मा आपसे वह कार्य करवा देता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती करने वाला वही परमपिता परमात्मा होता है लेकिन माध्यम आप को चुनता है !

इसके उदाहरण है हमारे देश के महान तपस्वी ऋषि वाल्मीकि जी जिन्होंने भगवान राम के जन्म से कई वर्षों पहले वाल्मीकि रामायण नाम से ग्रंथ लिख डाला, ऋषि वेदव्यास जी जिन्होंने भगवान कृष्ण के जन्म से वर्षों पहले भागवत ग्रंथ की रचना कर डाली, महात्मा तुलसीदास जी जिन्होंने रामायण ग्रंथ को नए सिरे से सृजन करते हुए रामचरित्र मानस की रचना की, इसी क्रम में अनेकों ऐसे संत हुए जिन्होंने हमारी भारतीय संस्कृति और
परम तत्व की खोज में अनेकों ग्रंथ लिखे,
जिनमें प्रमुख है,
कबीर दास जी, गुरु नानक देव, संत तुकाराम जी,
संत ज्ञानेश्वर जी, आदि शंकराचार्य जी, रसखान जी
संत कालिदास जी, आदि …अनेकों संत हुए जिन्होंने प्रभु भक्ति परम तत्व के विषय में
अनेकों रचनाएं लिखी है !
यह सब कैसे मुमकिन हो पाया इसका सीधा सा उत्तर है जब हमारा मन प्रभु प्रेम में लगा होता है
हम मन से अगर भक्ति में लग जाते हैं तब यही परमात्मा हमारे हृदय कमल से शब्द रूपी रचनाएं प्रकट करता है इसमें हमारी कोई योग्यता नहीं होती इसीलिए तो कहा जाता है कि हमारे देश के ऋषि मुनि काव्य रचनाकार क्या दिन और क्या रात
क्या सुबह और क्या श्याम कब धूप आई और कब छाव कभी पसीने से नहा रहे हैं तो कभी धूप से सूख रहे है न खाने पीने की चिंता न पहनने ओढ़ने की फुर्सत, लिखते लिखते उनको पता ही नहीं चलता कि कितने दिन गुजर गए, इस बीच कौन इस दुनिया में आया और कौन इस दुनिया से चला गया उनको पता ही नहीं चलता !
इस लौकिक दुनिया मैं उनकी कोई रुचि नहीं होती
वह अपनी अंतरात्मा में इतनी खोए रहते हैं कि उनको बाहरी दुनिया का कोई ज्ञान ही नहीं होता है,
वह तो बस अपने हृदय कमल में शब्द रूपी मोती तलाश रहे होते हैं उनके जीवन का लक्ष्य ही यही होता है कि आने वाले भविष्य को शब्द रूपी मोतियों से रचना रूपी माला से स्वागत करूं !

परम तत्व के ज्ञान को इतना सहज बना दूं कि जीव अपनी भोग रूपी विलासिता से बाहर निकलकर अपनी मुक्ति का साधन प्राप्त कर सकें
यह बात बिल्कुल सही है कि जैसी जिसकी
जिज्ञासा होगी वह उसी को आधार बनाकर लिखेगा और वैसा ही सोचेगा, इंसान के खानपान और आचार विचार के आधार पर ही उसके मंन की सोच जागृत होती है, और मन की सोच के आधार पर ही हृदय कमल से शब्द रूपी बीज अंकुरित होते हैं, किसी की भौतिक सुख साधनों में रुचि होती है तो वह कई प्रकार के भौतिक सुख साधनों के आविष्कार का निर्माण कर देता है, कोई भविष्य की घटनाओं के बारे में सोचता है तो वह भविष्य में क्या घटनाएं घटित होगी उसके बारे में आज ही काव्य ग्रंथ लिख देता है !
भौतिक सुख साधन और भविष्य की घटनाओं पर वर्णन करना यह सब क्षणिक सुख है,
कुछ समय और कालखंड के बाद इनका कोई महत्व नहीं रह जाता,
जैसे भौतिक सुख साधन हमारे दैनिक उपयोग के काम में आने वाली जिस किसी वस्तु का आपने निर्माण किया समय के साथ उसकी उपयोगिता भी खत्म हो जाएगी, उसी प्रकार जिस कालखंड की घटना के बारे में आपने वर्णन किया वह घटना घटित होने के बाद आपके उस लिखे हुए वर्णन का कोई महत्व नहीं रह जाएगा !
हां यह जरूर है कि आप प्रसिद्धि को जल्द प्राप्त कर लेंगे !

लेकिन जो इस परम तत्व,अजन्मे परमानंद के प्रेम के विषय में लिखता है वह तो बिना प्रसिद्धि के ही अमर हो जाता है !
जैसे हमारे ऋषि मुनि और संत महात्मा वह कल भी अमर थे आज भी है और आने वाले कल में भी अमर ही रहेंगे !
जब जब परम तत्व परमानंद की खोज की जाएगी
परमपिता परमेश्वर से पहले उन ऋषि मुनि संतों महात्माओं का नाम पहले आएगा !

इन शब्दों के द्वारा जो कुछ भी परिभाषित हुआ है
उसमें इस ‘दास’ की कोई योग्यता नहीं जो प्रभु ने सुझाया ‘दास’ लिखता चला गया !
व्याकरण और लेख लिखने की परंपरा से ‘दास’ अनभिज्ञ है इसमें कुछ त्रुटियां भी रह गई हो तो छोटा भाई समझ कर क्षमा कर देना !

‘राधे राधे’
‘जय श्री कृष्णा’

आज के लिए बस इतना ही अगले सप्ताह फिर किसी नए विषय को लेकर चिंतन और चर्चा करेंगे !

स्वरचित मौलिक रचना
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा राजस्थान
shyamkhatik363@gmail.com

Language: Hindi
100 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

एक थी गंगा
एक थी गंगा
डॉ. श्री रमण
आहिस्था चल जिंदगी
आहिस्था चल जिंदगी
Rituraj shivem verma
कौन है वो
कौन है वो
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
विवाह
विवाह
Shashi Mahajan
असलियत को छुपाने वाले अक़्सर मुखोटा लगाते है
असलियत को छुपाने वाले अक़्सर मुखोटा लगाते है
Bhupendra Rawat
मैं मधुर भाषा हिन्दी
मैं मधुर भाषा हिन्दी
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
यात्राओं से अर्जित अनुभव ही एक लेखक की कलम की शब्द शक्ति , व
यात्राओं से अर्जित अनुभव ही एक लेखक की कलम की शब्द शक्ति , व
Shravan singh
ट्रेन संख्या १२४२४
ट्रेन संख्या १२४२४
Shashi Dhar Kumar
मत मन को कर तू उदास
मत मन को कर तू उदास
gurudeenverma198
- तुझको खबर नही -
- तुझको खबर नही -
bharat gehlot
शिक्षा का महत्व
शिक्षा का महत्व
Dr. P.C. Bisen
मेरे हाल से बेखबर
मेरे हाल से बेखबर
Vandna Thakur
मुझे जीना सीखा दो ज़रा ( ग़ज़ल)
मुझे जीना सीखा दो ज़रा ( ग़ज़ल)
ओनिका सेतिया 'अनु '
"मैं आज़ाद हो गया"
Lohit Tamta
जिंदगी की तन्हाइयों मे उदास हो रहा था(हास्य कविता)
जिंदगी की तन्हाइयों मे उदास हो रहा था(हास्य कविता)
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
जिसनें जैसा चाहा वैसा अफसाना बना दिया
जिसनें जैसा चाहा वैसा अफसाना बना दिया
Sonu sugandh
बंद पंछी
बंद पंछी
लक्ष्मी सिंह
पहले की औरतों के भी ख़्वाब कई सजते थे,
पहले की औरतों के भी ख़्वाब कई सजते थे,
Ajit Kumar "Karn"
3788.💐 *पूर्णिका* 💐
3788.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
गीता के छन्द : परिचय 3/5
गीता के छन्द : परिचय 3/5
आचार्य ओम नीरव
“प्रजातांत्रिक बयार”
“प्रजातांत्रिक बयार”
DrLakshman Jha Parimal
चंदन माटी मातृभूमि का
चंदन माटी मातृभूमि का
Sudhir srivastava
उम्मीदें और रिश्ते
उम्मीदें और रिश्ते
पूर्वार्थ
त्रिपदिया
त्रिपदिया
Rambali Mishra
आदमी और गधा
आदमी और गधा
Shailendra Aseem
"अंगूरी रानी"
Dr. Kishan tandon kranti
*प्राकृतिक संगीत*
*प्राकृतिक संगीत*
Shashank Mishra
रिश्ता ख़ामोशियों का
रिश्ता ख़ामोशियों का
Dr fauzia Naseem shad
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
अंसार एटवी
लोग क्या कहेंगे
लोग क्या कहेंगे
Mansi Kadam
Loading...