जैसे आप अपने मोबाइल फ़ोन में अनुपयोगी सामग्रियों को समय-समय
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जिसको जिन्दगी में गम भुलाना आ गया,समझिए वो जीत गया इस जिन्द
मैंने हर फूल को दामन में थामना चाहा ।
चमकते चेहरों की मुस्कान में….,
वो तो मां है जो मुझे दूसरों से नौ महीने ज्यादा जानती है
रिश्ते में पारदर्शिता इतनी हो कि
आओ उस प्रभु के दर्शन कर लो।
24/248. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*उत्साह जरूरी जीवन में, ऊर्जा नित मन में भरी रहे (राधेश्यामी