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31 Aug 2024 · 2 min read

साहित्य सृजन की यात्रा में :मेरे मन की बात

मन में एक अनूठा उत्साह है, मानो लेखन का जुनून सातवें आसमान पर पहुंच गया हो। मैं नियमित रूप से लेखन करना चाहता हूँ, पर व्यस्तता की दीवारें खड़ी हैं। स्कूल के ढेर सारे काम, घर के कर्तव्यों का पालन, बच्चों और परिवार के साथ समय बिताने के बाद, जब थोड़ी सी फुर्सत मिलती है, तब जाकर कलम उठाने का अवसर मिलता है। विचारों की एक अद्भुत बाढ़ मस्तिष्क में उमड़ती है, और साहित्य का सृजन होता है।मुझे अब तक यह महसूस नहीं होता कि मैं एक ‘लेखक’ बन गया हूँ। यह निर्णय तो अनुभवी साहित्यकार और आप सभी पाठकगण ही कर सकते हैं, जो मेरी पोस्ट पढ़ते हैं। मैं सिर्फ अपने विचारों और भावनाओं को शब्दों में पिरोने की कोशिश करता हूँ।मुझे यह भी महसूस होता है कि कुछ लोग, जिन्होंने लेखन कार्य को सीख लिया है, उसे अपनी बपौती समझ बैठे हैं। उम्रदराज होने के बावजूद, उनके लेखन में वह धार नहीं है जो एक नए लेखक के पास होती है। मैं यह बातें अपनी रचनाओं के आधार पर नहीं कह रहा हूँ, क्योंकि मैं अभी भी खुद को एक नौसिखिया मानता हूँ।आजकल कई युवा लेखक, ग़ज़लकार और गीतकार अपनी लेखनी के दम पर बहुत ऊँचाइयों को छू रहे हैं। जैसे कि मनोज मुंतशिर, प्रसून जोशी, और स्वानंद किरकिरे ने अपने अद्भुत लेखन से बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई है। इसके अलावा, कई डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स भी अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी पहचान बना रहे हैं।लेकिन हमारे समाज में एक-दूसरे की टांग खींचने वाले लोग भी हैं, जो सहयोग और प्रोत्साहन देने के बजाय एक-दूसरे की राह में रुकावटें खड़ी करते हैं। मगर मैं इन चीजों की परवाह किए बिना, अपने काम में लगा रहूँगा। मैं रोज़ाना लिखूँगा, और तब तक लिखता रहूँगा जब तक उम्दा और बेहतरीन साहित्य का सृजन नहीं हो जाता।आप सभी से मेरा विनम्र अनुरोध है कि आप मेरी रचनाओं को पढ़ें, सराहें, और यदि कोई कमी लगे तो प्रतिक्रिया अवश्य दें। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है, और वही मुझे आगे लिखने के लिए प्रेरित करेगी।आपके साथ और दुआओं की जरूरत है।धन्यवाद,
शुभरात्रि।
आपका प्रतापसिंह ठाकुर “राणाजी ”
सनावद (मध्यप्रदेश )

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