रोज़ दरवाज़े खटखटाती है मेरी तन्हाइयां,
जिन्दगी के कुछ लम्हें अनमोल बन जाते हैं,
सोशल मीडिया में आधी खबरें झूठी है और अखबार में पूरी !!
वक्त एवम् किस्मत पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि द
कहने को तो बहुत लोग होते है
करम के नांगर ला भूत जोतय ।
मैं उस बस्ती में ठहरी हूँ जहाँ पर..
आंसू ना बहने दो
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
तकनीकी युग मे स्वयं को यंत्रो से बचाने के उपाय
तुम्हारे कर्म से किसी की मुस्कुराहट लौट आती है, तो मानों वही
कभी शिद्दत से गर्मी, कभी बारिश की फुहारें ,
--कहाँ खो गया ज़माना अब--
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
चमकते चेहरों की मुस्कान में….,