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18 Aug 2024 · 1 min read

मगर हे दोस्त—————–

मेरे तो सभी सपनें,
हो चुके हैं दफ़न,
वो सपनें जो देखें थे मैंने,
अपने प्यार को अमर बनाने के लिए।

हे हमराज, तू भी तो बता,
क्या तुम्हारे सभी सपनें,
हो चुके हैं साकार,
वहाँ, जहाँ तू रहता है,
अपने नये साथी के साथ।

कहीं तेरे साथ मेरी तरहां,
ऐसा तो नहीं हुआ है,
कि अधूरी हो तेरी कोई हसरत,
और मुकम्मल नहीं हुए हो,
तुम्हारे भी कुछ सपनें।

जैसे कि मेरी थी इच्छा,
तुमको और तुम्हारा प्यार पाने की,
और वह मैं नहीं पा सका,
बहुत कुछ पाकर भी मैं,
संतुष्ट नहीं हूँ किसी के बिना।
मगर हे दोस्त———————–।।

शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

Language: Hindi
120 Views
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