वो शख्स अब मेरा नहीं रहा,
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मानने लगें स्वार्थ को प्रमुख
आपको क्या लगता है ! सामने वाला कुछ जान नहीं रहा होता हैं।
हम अरण्यरोदण बेवसी के जालों में उलझते रह गए ! हमें लगता है क
फिलहाल अंधभक्त धीरे धीरे अपनी संस्कृति ख़ो रहे है
दुआओं में शिफ़ा है जो दवाओं में नहीं मिलती
Abhishek Shrivastava "Shivaji"
तू मेरे ख्वाब में एक रात को भी आती अगर
शहर को मेरे अब शर्म सी आने लगी है