राह के कंकड़ अंधेरे धुंध सब छटती रहे।
रात बसर हो जाती है यूं ही तेरी यादों में,
वज़्न - 2122 1212 22/112 अर्कान - फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन/फ़इलुन बह्र - बहर-ए-ख़फ़ीफ़ मख़बून महज़ूफ मक़तूअ काफ़िया: आ स्वर की बंदिश रदीफ़ - न हुआ
कुछ प्रेम उत्सव नहीं मना पाते
सुख भी चुभते हैं कभी, दुखते सदा न दर्द।