जाओ कविता जाओ सूरज की सविता
हैं फुर्सत के पल दो पल, तुझे देखने के लिए,
रिसाय के उमर ह , मनाए के जनम तक होना चाहि ।
कहते हैं लड़कों की विदाई नहीं होती .
सपने उन्हीं के सच होते हैं, जिनके हौसलों में जान होती है।
सत्संग की ओर
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
हाल ऐ दिल बयाँ किया था हमने
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग..... मिलन की चाह
चाय के प्याले के साथ - तुम्हारे आने के इंतज़ार का होता है सिलसिला शुरू
"वक्त"के भी अजीब किस्से हैं
मीठा जीतना मीठा हो वह घातक विष बन जाता हैं
दुख दें हमें उसूल जो, करें शीघ्र अवसान .
"लाज बिचारी लाज के मारे, जल उठती है धू धू धू।
सब को जीनी पड़ेगी ये जिन्दगी
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त