इत्तिफ़ाक़न मिला नहीं होता।
इंसा होने का फ़र्ज़ भी सीखो
बरसात - अनुपम सौगात
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
आज गज़ल को दुल्हन बनाऊंगा
वो लिखती है मुझ पर शेरों- शायरियाँ
कैसे मैं खुशियाँ पिरोऊँ ?
संवेदना - अपनी ऑंखों से देखा है
तुम्हारे पथ के कांटे मैं पलकों से उठा लूंगा,