इक दिन आएगा जब खुद को मरना होगा
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
*शादी में है भीड़ को, प्रीतिभोज से काम (हास्य कुंडलिया)*
बना है राम का मंदिर, करो जयकार - अभिनंदन
खुदीराम बोस की शहादत का अपमान
जिंदगी थोड़ी ही थम जाती हैं किसी के जाने के बाद
हमारी चाहत तो चाँद पे जाने की थी!!
अनारकली भी मिले और तख़्त भी,
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एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
प्रेम और घृणा से ऊपर उठने के लिए जागृत दिशा होना अनिवार्य है
"घूंघट नारी की आजादी पर वह पहरा है जिसमे पुरुष खुद को सहज मह