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17 Jul 2024 · 1 min read

इच्छा मेरी / मुसाफ़िर बैठा

मैं चाहता हूं
मैं फेसबुक पर
या जहां कहीं भी
ऑनलाइन या ऑफलाइन
जितना भी हगूं मूतूं
जो भी हगूं मूतूं
वह कविता बन जाए
या कविता कहला जाए!

[Note : प्रस्तुत हगाई–मुताई को भी तद्धर्मा सहज–सतही हगाई–मुताई का ही एक नमूना या कि हिस्सा माना जाए!]

Language: Hindi
135 Views
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