चाय का गहरा नाता होता है सबसे
परिमल पंचपदी- नयी विधा
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
नाजुक देह में ज्वाला पनपे
बस तेरे होने से ही मुझमें नूर है,
करें ये प्रेम को आहत ,सदा लोगों को तोड़ा है !
एक भरी महफिल में माइक संभालते हुए।
Abhilesh sribharti अभिलेश श्रीभारती
जो लोग धन को ही जीवन का उद्देश्य समझ बैठे है उनके जीवन का भो
ग़ौर से ख़ुद को देख लो तुम भी ।
राणा सांगा की वीरता पर प्रश्न क्यों?
वो मिटा ना सके ज़ुल्म को ज़माने से अभी ।
दिया जोतने खेत का, टुकड़ा जिन्हें उधार ।
यह देखो मिट्टी की हटरी (बाल कविता)
उसकी अदा तो प्रेम पुजारी लगी मुझे।