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12 Jul 2024 · 1 min read

मन

मन का पंछी नभ में विचरे जिसका ओर न छोर कहीं
कहीं सूर्य सा चमक रहा है अंधेरा घनघोर कहीं

पर्वत सी ऊँचाई इसमें
सागर सी गहराई है
स्थिर भी रहता है लेकिन
मौसम सा हरजाई है
बन जाता है फौलादी तो पड़ जाता कमजोर कहीं
कहीं सूर्य सा चमक रहा है अंधेरा घनघोर कहीं

झंझावातों से लड़ जाता
झूम झूम कर गाता है
मन धीरज है धारण करता
किंतु टूट भी जाता है
कहीं व्यथित होकर रोता है बनता हर्षित मोर कहीं
कहीं सूर्य सा चमक रहा है अंधेरा घनघोर कहीं

मन विचरण करता रहता है
महफिल में तन्हाई में
मन पर अंकुश रखना मुश्किल
बचपन या तरुणाई में
तन बूढ़ा हो जाता लेकिन मन पर कोई जोर नहीं
कहीं सूर्य सा चमक रहा है अंधेरा घनघोर कहीं

यह मन फूलों सा कोमल है
काँटों बीच बसेरा है
अनगिन सी अभिलाषाओं पर
नश्वरता का डेरा है
जीवन की उलझन में मन का दब जाता है शोर कहीं
कहीं सूर्य सा चमक रहा है अंधेरा घनघोर कहीं

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 11/07/2024

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 158 Views
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