आँखें (गजल)
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal (कौशलेंद्र सिंह)
मैं जब भी लड़ नहीं पाई हूँ इस दुनिया के तोहमत से
जखने कथा, कविता ,संस्मरण इत्यादि अपन मुख्य धारा सँ हटि पुर्व
श्री गणेश जी का उदर एवं चार हाथ
व्यक्ति महिला को सब कुछ देने को तैयार है
अपनो की ही महफ़िल में, बदनाम हो गया हूं।
सरकार से हिसाब
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
ग़ज़ल - ज़िंदगी इक फ़िल्म है -संदीप ठाकुर
फर्क़ क्या पढ़ेगा अगर हम ही नहीं होगे तुमारी महफिल में
चिड़िया आई
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
सभी गम दर्द में मां सबको आंचल में छुपाती है।