खामोशी गवाह थी
कहानी
खामोशी गवाह थी
कहते हैं समय हमेशा गतिशील रहता है, पर उस दिन समय कुछ ठहर सा गया था। संध्या का समय था स्तब्धता चारों दिशाओं में ऐसे छाई थी जैसे वर्षा ऋतु में बादल। ग्रीष्म ऋतु के उस उमस भरे मौसम में जब ठंडा- ठंडा पवन का झोंका दिल को छू जाता तो ऐसा लगता मानो किसी ने हवाओं में अमृत घोल दिया हो। हवा के झोंके जब नीम के वृक्ष को छू लेते तो पत्तियों की सनसनाहट से निकली आवाज चुपके से कानों के पास जाकर एक अलग सा रस घोल देते जिस रस का उल्लेख किसी हिंदी व्याकरण में भी नहीं है। उसी रस का आनंद उठाते राजन एक अनजाने राह पर चला जा रहा था। सहसा उसकी नज़रें नीम के नीचे जड़ पर बैठे उस व्यक्ति पर पड़ी ।फटी हुई पर रूई जैसे सफेद धोती और कुर्ता पहने अगर हम उसे आसमान के श्वेत बादल की संज्ञा दे तो कोई अतिशंंयोक्ति नहीं होगी, कुछ ज्यादा ही चिकनी लंबी दाढ़ी, चपटे गाल ,झुंझली काली आंखें और चौड़े ललाट को आधे ढ़के रजत से चमकीले बाल व ललाट पर चंदन का टीका। ऐसे अजूबे को देख बड़ा आनंद आता। उनके शरीर की त्वचा कपड़ों पर पड़े सिलवटों की भांति सिकुड़ चुकी थी, जिससे उनकी उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता था।
राजन उनके पास जा बैठा कुछ बातें भी किया। उनकी आँखों में ऐसा तेज था कि कोई भी उम्र का बंधन उसे मिटा ना सके ।वे युवावस्था को लांघकर वृद्धावस्था में कदम रख चुके थे। अब संध्या के उजाले को रात्रि का अंधकार निगलता जा रहा था। राजन के मन में घर जाने की इच्छा हुई। वह बूढ़े काका का अभिवादन कर घर की ओर चला। दो दिन बाद वह उसी रास्ते पर गया और उन महात्मा के दर्शन उसे वहीं पर हुए। जब भी वह उनके सामने जाता काका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान होती। वह भी नीम विशाल वृक्ष के नीचे बैठ जाता । वहाँ हवा में सुकून होता था। नीम की शीतलता उसके रगों में दौड़ रहे गर्म खून को भी शीतल कर देती। वह हर दो दिन के अंतराल में वहाँ जाया करता था। आज भी राजन वही जाने की तैयारी में था आज वह ज्यादा ही उत्सुक था क्योंकि लगभग एक सप्ताह से उसने नीम की पत्तियों की आवाज नहीं सुनी थी। वृक्ष के पास जाते ही काका का मुस्कुराता हुआ चेहरा उसके सामने आया ।वह नीम के जड़ पर जा बैठा और काका से पूछने लगा :- “काका आपके बचपन से बुढ़ापे तक की कहानी सुनाइए ना” उसके पूछते ही काका का अमलतास सा खिला चेहरा सेमल का फूल बन गया और पत्तियों की सनसनाहट भी ऐसे थम गई मानों उनके हंसने से वह भी हँसती हों। काका का मुरझाया चेहरा देख उसे अपने आग्रह पर खेद हुआ। लगा की काका के सालों पुराने घाव को उसने कुरेद दिया हो।उसने अपना आग्रह काटते हुए उनका ध्यान दो स्वानों की ओर आकर्षित करना चाहा पर काका बात काटते हुए बोले :- “बताता हूँ बेटा ।” क्या शब्द थे मिश्री के डले।
काका ने अपने स्मृति के पहिए को 66 साल पीछे घुमाते हुए कहा :-
मैं 12 साल का था मेरे पिता मोची थे और माँ पास के स्कूल में खाना बनाया करती थी। 5 साल का मेरा छोटा भाई भी था जिस पर मैं अपनी जान छिड़कता था। एक छोटा और सुखी परिवार था हमारा। गरीबी की हालत में भी हम सुख से रहते थे पर हमारे सुख के सूरज को लंबे समय के लिए ग्रहण लग गया । एक दिन की बात है अमावस की काली घनी रात थी,बारिश का मौसम था, अचानक काली घटा छाने लगी ,बादल अपना बांध तोड़ कर इस तरह बरसने लगे मानो पूरा गांव अपने साथ बहा ले जाएगा। वह रात मेरे जीवन की सबसे काली रात थी। बिजली इस तरह कड़क रही थी कि एक महान शक्ति का आभास होता,उस भयानक रात में मेरी मां घर वापस नहीं आई थी मेरा भाई रोते-रोते अभी सोया ही था कि मां को ढूंढने गए पिता भारी पाँव से घर वापस लौटे और मुझे पता चला कि माँ एक मोटर की चपेट में आ गई ।मुझ पर तो पहाड़ टूट पड़ा। इतना कहते ही उनकी आंखों का सागर उमड़ पड़ा, आंखों से बड़ी -बड़ी मोतिया गालों को बिना छुए जमीन पर गिरने लगी। ऐसा लगा जैसे बरसों से जो दुख वे अपने ह्रदय में समेटे हुए थे आंसुओं के माध्यम से आज बाहर आ रहे हैं। आगे बोले :- माँ के जाने के बाद पिता का प्यार हमारे प्रति और बढ़ गया ।वे हर पल सोचते कि हमें मां की कमी महसूस ना हो, पर मन उन्हें भुलाने को तैयार ही नहीं था ।दिल के हर कोने में मां की छवि ऐसे बसी थी जैसे सागर किनारे रेत, लेकिन उसकी बड़ी-बड़ी लहरें भी उसे मिटा ना सकती । समय बीतते 11 महीने हो गए पिता ने किसी अन्य महिला से शादी कर ली और उसे घर ले आए ।पर हम दोनों भाई उन्हें मां की उपाधि नहीं दे पाए। नई मां पिता के सामने तो हम पर बड़ा प्यार जताया करती थी पर पिता के पीछे हमें विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित करती थी ।उनके मुख में राम और बगल में छुरी होती थी। कई बार तो जी करता कि मैं सांस रोक कर मर जाऊं पर सोचते ही छोटे भाई का प्यारा सा चेहरा आंखों के सामने आ जाता और आँखें झिलमिला उठतीं। कोई माँ इतनी पत्थर दिल भी हो सकती है कि कोई अग्नि उसे पिघला ना सके आज मैंने पहली बार महसूस किया।
जो दर्द वो सालों से छिपाए हुए थे उसे राजन ने फिर से ताजा कर दिया था। कुछ घाव ऐसे होते हैं जो निशान तो नहीं छोड़ते पर उनका दर्द हमें जिंदगी भर याद रहता है। राजन उनकी बातों में भाव विभोर हो गया था उनकी बातें उसकी भावनाओं को ऐसे बहा ले जाती जैसे सागर की बड़ी-बड़ी लहरें तटस्थ लोगों को बाहर ले जाती हैं और अपने में समा लेती है ।काका तो शास्वत मोम के बने थे जो थोड़ा सा तेज पाते ही पिघल जाया करते थे।
सौतेली मां के आते ही सगे पिता का व्यवहार भी सौतेलों सा हो गया। एक दिन वह दोनों मेरे गोद में 5 साल के भाई को छोड़कर कहीं चले गए। मैं अबोध बालक दुनिया की रीत ना जानता था न ही पहचानता था। जो अब तक पिता के कंधे पर बैठ आम तोड़ा करता था आज जिम्मेदारियों के बोझ के तले दब गया। जो हाथ कमल की पंखुड़ी की तरह कोमल थे अब उनमें गाँठे बनने लगी थी ।भगवान की लीला भी अजीब है एक तरफ तो वह सब कुछ छीन लेता है और दूसरी तरफ मन में जीने का साहस भी भर देता है ।लोग मुझसे अपना काम निकलवा लेते थे और हाथों में दो रोटियां थमा देते थे और मेरी नन्ही आंखें खिल उठती थी जैसे किसी ने कुबेर का खजाना थमा दिया हो। मैं दौड़ते दौड़ते घर जाता और दोनों रोटियां भाई को खिला देता ।अब मैं दुनिया की रीत समझ चुका था अब मुझे मेरी मेहनत का पूरी कीमत मिलने लगी। पर जब भी मैं घर में कदम रखता सारी बीती बातें किसी हिंदी सिनेमा की तरह आंखों के रेटिना में छप जाती। अब मैं उस घर और उस गांव से दूर यहां रामगढ़ में रहने लगा। मैंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और मेहनत करके भाई को ऊँचा ज्ञान दिलाया, पढ़ा लिखा कर बड़ा अफसर बनाया। अब उनके दरवाजे पर खुशियां दस्तक दे चुकी थी वह अपनी जिंदगी में बेहद खुश थे।
हर दिन की तरह आज भी वातावरण शांत था। राजन और काका बातें कर ही रहे थे कि उस शांतिमय वातावरण का काया चिर कर आती हुई तो कदमों की आवाज ने दोनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। मृगनयनी ,लाल गाल ,भूरे होंठ,सीधे बाल और लंबा सा फ्रांक पहने जो दोनों पैरों को छू रही थी दौड़ती हुई राजन के हमउम्र की लड़की उन दोनों की ओर बढ़ी ।उसकी आंखों में स्नेह था और मन में भय ।उसने शहद जैसे मीठे स्वर में कहा -“बाबा” शायद वह काका की परिचित थी। उसके पीछे घुंघराले बाल वाला अपने शरीर का पूरा भार जमीन पर डालते हुए भारी पैरों से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति भी उनकी ओर आया और काका के ऊपर जोर जोर से चिल्लाने लगा। इस खतरे से राजन और काका दोनों ही अनजान थे। वह व्यक्ति इतने गुस्से में था कि उसकी आंखों से कब ज्वाला निकले और उन तीनों को भस्म कर दे। वह काका पर बेमौसम बरसात की तरह बरसने लगा। पता चला कि वह व्यक्ति काका के भाई हैं पर उसके गुस्से के कारण से काका पूरी तरह अनजान थे। वह कपटी भाई उन्हें घर से निकल जाने के लिए कहने लगा। धीरे-धीरे समझ आने लगा कुछ दिन पहले की बात है काका के पूरी तरह से घिसी हुई चप्पल जब टूट चुकी थी जिसे वो आंगन में बैठे अपने कांपते हुए हाथों से सुई और धागे से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। उनकी अपनी कोई औलाद ना थी पर अपने भाई के बच्चों को अपने बच्चों की तरह प्यार देते थे। उनके भाई के दो बच्चे थे ।एक स्मृति दूसरा अर्थ। अर्थ छोटा पर बड़ा सयाना बच्चा था। उसने अपने बाबा को चप्पल जोड़ते देखा तो दौड़ते हुए पास की दुकान पर गया और एक नया चप्पल खरीद कर ले आया उन पैसों से जिसे उसकी मां ने उसे स्कूल बैग लेने के लिए दिया था। इस दृश्य को देख अर्थ की मां ने तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बना दिया। इस छोटी और प्यारी सी बात को उसने पति के सामने ऐसे बखान किया जैसे अर्थ ने अपने पिता की सारी संपत्ति उनपर लुटा दी हो। सही बात तो यह थी कि काका भाई और बहू की आंखों में खलने लगे थे। कहते हैं कि बुढ़ापा बचपन का पुनरआगमन होता है पर काका के मन में ना बचपना था, ना कोई शिकायत थी, था तो सबके लिए प्यार, जो प्यार उसके भाई को ना दिखा क्योंकि उसकी भाई की आंखों में उसकी पत्नी ने कोर्ट की देवी की तरह काली पट्टी बांध रखी थी।
जब हम किसी व्यक्ति को किसी दूसरे के खिलाफ रोज भड़काते रहें तो उसके मन में उस व्यक्ति के प्रति घृणा इस कदर भर जाती है जैसे जल के एक -एक बूंद से घड़ा ।काका के भाई की हालत भी कुछ ऐसे ही थी। उसने काका को बहुत खरी खोटी सुनाई और काका के पास पैसों की गड्डीयाँ फेंक कर कहा कि :- “आप हम पर दया करके इस गाँव और हमें छोड़ कर चले जाइए।” काका का मन अब भी शांत था, उनकी आंखों में अब प्यार था। उनके शांत मन को देखकर बड़ा आश्चर्य होता। काका खामोश थे, उनकी खामोशी गवाह थी उनकी महानता की। भाई की बातें सुन कर बैठे हुए काका धीरे से खड़े हो गए उनके खड़े होते ही भाई के दोनों बच्चे उनसे लिपट कर रोने लगे। काका ने उन्हें किसी तरह चुप करा लिया और पैसों को उठाकर भाई के हाथों में थमा दिया और उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा :- “भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखें चाहे तुम मेरे साथ जो करो पर मेरे दिल में तुम्हारे लिए प्यार हमेशा रहेगा।” क्या शब्द थे? काका की बातों ने भाई की मन में ऐसा प्रहार किया कि किसी ने फूल फेंक कर शीशा तोड़ दिया हो और आवाज भी ना आई हो। उनकी बातें सुनकर पत्थर दिल भाई की आँखें भर आई और उसने अपनी गलती का पछतावा करते हुए उन्हें गले से लगा लिया।अचानक हवा चलने लगी नीम के पत्तियों की मधुर आवाज पुनः सुनाई देने लगी।
………वेदकांति भास्कर वेदिका……….