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7 Jul 2024 · 1 min read

कैसे ज़मीं की बात करें

जब हुक्म मानते ही नहीं है वहां के हम
कैसे ज़मीं की बात करें आसमां से हम

गुजरे हैं रोज एक नए इम्तिहां से हम
अब दूर जा रहे हैं तेरी दास्तां से हम

कुछ तो बता, हमारा वह कुनबा कहां गया
रो-रो के पूछते हैं यह खाली मकां से हम

क्यों सर झुकाएं ग़ैर ख़ुदाओं के सामने
सब कुछ तो पा रहे हैं तेरे आस्तां से हम

सूली का डर नहीं है, न परवाह मौत की
सच ही अदा करेंगें हमेशा ज़ुबां से हम

होता नहीं यकीन किसी शख्स पर यहां
“वाकिफ हुए हैं जब से फरेबे जहां से हम”

किस्मत के हेर फेर से ‘अरशद’ निकल न पाए
फिर आ गए वहीं पे, चले थे जहां से हम

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