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5 Jul 2024 · 1 min read

दर्द का एहसास

मुझे नहीं पता की मुझे दर्द ज़्यादा कब हुआ ,
जब तुम थे तब इसका एहसास ज़्यादा था
या जब तुमने मुँह मोड़ लिया तब इसका कोलाहल ज़्यादा था ,

सोचा था इस बार भी रोक लूँ तुम्हे ,
फिर सोचा अगर इतनी ही हस्सासियत बाकी होती तुममे
तो जाने की यूँ टकटकी लगा के न बैठे होते ,
यूँ जा तो रहे हो गैरों के पहलुओं में
खुद को जज़्ब करने
लेकिन बस इतना याद रखना
जहाँ जा रहे हो एक नहीं सौ बार तोड़े जाओगे
फिर ज़िन्दगी तुम्हारी भी ज़िन्दगी के टुकड़े समेटने में ही बीत जाएगी ,

और ये जो महफिलें रौशन किया करते हो
फिर चारों ओर शमाओं का जलवा होगा
और तुम्हारा वजूद भी उन्ही की लौ में फ़ना हो के रह जायेगा |

द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’

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