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30 Jun 2024 · 1 min read

चाँद शीतलता खोज रहा है🙏

हाय रे ! गरमी नाद छिड़ा

🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵

मधुबन खुशबु निरस हो
सागर सुख गागर सी हो

ताल तलैया पर्पड़ी सूखी
पथ पगडंडी आग सजी

आंगन सूनी महल बीच में
सूनी जिगर मुर्झाया तन है

सूखी मधु रस सुगंध बसंत
बरखा बूदें जन आँखें धोती

कुर्ता पजामा वसन तन
बिन बारिश होती गिली

रात दिन तमस निस्तब्ध पड़ी
कद्र मिटती जन जन दीखती

वक्त बदलतीं भू लग रही है
चाँद शीतलता खोज रही है

सूर्य पुंज आग उगलने लगी
वादी की हवाएं मौन खड़ी

दिवा निशा में कोई भेद नहीं
बढ़ती ताप तड़पाती जवानी

मृग मरीचिका की मनमानी
पगली पगली चमक चमेली

बोल ज़रा तू अब कहाँ चली
दिल परदेशी क्षितिज पार की

आगे पीछे दौड़ती लहर चली
सजीवता प्यासी वेवश खड़ी

बिकल बैचेन चंचल चितबन
तिमिर उषा की ज्योत गरम

सूखी मुखर मंड़प सुनी खड़ी
साज बजे पर बेसुर राग गूँजीं

हाय रे ! गरमी हाय रे ! गरमी
ताप बढ़ा दिन रात नाद छिड़ा

मीठी रातों में भी आँख खुला
पर्यावरण प्रदूषण स्वच्छ हवा

देखते देखते सब बदल गया
हे जन ! बढ़ आगे संभाल इसे
माता छांह आँचल ताप बढ़ा

संरक्षण विहीन प्रकृति माता
विवश लाचार खड़ी रो रही ॥

🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵

टी. पी. तरुण
(तारकेश्वर प्रसाद तरुण )

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