होता है पिता हिमालय-सा, सागर की गहराई वाला (राधेश्यामी छंद)
होता है पिता हिमालय-सा, सागर की गहराई वाला (राधेश्यामी छंद)
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1)
होता है पिता हिमालय-सा, सागर की गहराई वाला।
संतति को है अमृत देता, खुद पीता है विष का प्याला।।
2)
सुत और सुता की ही चिंता, जीवन-भर जिसे सताती है।
कितना बोझा रहता उस पर, मॉं सिर्फ जान यह पाती है।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा निकट मिस्टन गंज रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451