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20 Jun 2024 · 1 min read

त्रिपदा

त्रिपदा

जब हो मन में प्यार
हो सबका सत्कार
दिल में हो उजियार।

स्नेहिल सेवा भाव
दे सबको मधु छांव
बन जाए प्रिय गांव।

प्रेम सुधा बरसात
भागे हर आपात
मधुमय हो दिन रात।

उर्मिल भाव विभोर
पकड़ प्रेम की डोर
चलो गंग की ओर।

नेता का संसर्ग
कभी न उत्तम सर्ग
यह धूमिल है वर्ग।

प्राणी से हो प्यार
दूषित को धिक्कार
पापी को फटकार।

पतित जनों से दूर
कर मद चकनाचूर
बन जाना प्रिय नूर।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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