Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jun 2024 · 4 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम : मानव धर्म की खोज
लेखक : हरिदत्त शर्मा, प्रधानाचार्य (से० नि०) शिव कुटी, छतरी वाला कुऑं, पीपल टोला, रामपुर (उ० प्र०)
प्रथम संस्करण : गाँधी जयन्ती 2001
पृष्ठ : चौरासी
——————————————
समीक्षक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
——————————————
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।

अर्थात धैर्य (धृति), क्षमा, दम (मन को वश में रखना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (तन मन बुद्धि की शुद्धि), इन्द्रिय निग्रह, धी (बुद्धि की वृद्धि), विद्या (सुख तथा मुक्ति के उपाय करना, सत्य, अक्रोध-यह धर्म के दस लक्षण है। मनुस्मृति के उपरोक्त श्लोक को आधार मानकर धर्म के इन सभी दस लक्षणों की विस्तार से चर्चा करते हुए विद्धान लेखक श्री हरिदत्त शर्मा ने दस लम्बे निबन्ध लिखे हैं, तथा उन सब निबन्धों के संग्रह को पुस्तक रुप प्रदान करके “मानव धर्म की खोज” शीर्षक प्रदान किया है।

वास्तव में यह धर्म के दस लक्षण कुछ ऐसे नैतिक मूल्य है, जिनसे किसी भी व्यक्ति की असहमति संभव नही है, चाहे वह किसी भी उपासना पद्धति का अनुयायी हो अथवा उसका धर्म अथवा सम्प्रदाय कोई भी क्यों न हो। केवल इतना ही नहीं, जो लोग अन्य कारणों से मनुस्मृति का समर्थन भले ही नहीं करते हों, उनके लिए भी उपरोक्त श्लोक का विरोध करना संभव नहीं है। जिन ऊँचे दर्जे के गुणों का उल्लेख उपरोक्त श्लोक में किया गया है, वे मनुष्य को पूर्ण बनाने वाले हैं, उसे मनुष्यता का गुण प्रदान करने में समर्थ जीवन मूल्य हैं। व्यक्ति और समाज दोनों का ही हित उपरोक्त श्लोक मे उल्लिखित गुणों का अनुसरण करने पर किया जा सकता है। इस श्लोक में जन्म के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई विभेद नहीं है। इसमें जातिप्रथा का अंश लेश मात्र भी उपस्थित नहीं है। इसमें मानव स्वभाव की कतिपय कमजोरियों को ध्यान में रखते हुए उन पर विजय प्राप्त करने में ही मनुष्य के उच्च धरातल पर पहुॅंचने का मार्ग सुझाया गया है। इस श्लोक में ईश्वर अनुस्थित है, देवी देवता भी नही हैं, मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा या गिरजाघर भी नहीं है। धार्मिक व्यक्तियों के जीवन में जहाँ इस श्लोक का समुचित स्थान है, वहीं धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के समाज में भी इन गुणों का अपना विशेष महत्व है।

श्री हरित्त शर्मा की खूबी यह है कि उन्होंने पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से धर्म के दस लक्षणों की व्याख्या की है। उन्होंने किसी प्रकार के संकुचित धार्मिक आग्रह का आश्रय लिए बगैर मनुष्य मात्र को ध्यान में रखकर इन उदार जीवन मूल्यों की व्याख्या की है। इसलिए अपने-अपने सीमित धार्मिक आग्रहों में सिमटे लोगों के लिए भी यह व्याख्या बहुत लाभकारी रहेगी, तो धर्म की संकुचितताओं को अस्वीकार करने वाले समुदाय के लिए भी यह व्याख्या सब प्रकार से स्वीकार्य होगी।

अगर एक ऐसी धार्मिक संहिता के निर्माण का प्रश्न उपस्थित हो कि जिसमें सब धर्मों का सार हो तथा जिस पर सब धर्मों की आम सहमति हो, तो निश्चय ही श्री हरिदत्त शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक “मानव धर्म की खोज” उस संहिता के निर्माण में अत्यन्त सहायक सिद्ध होगी। वस्तुतः स्वयं यह पुस्तक ही अपने आप में सर्वधर्म सम्मेलन का सार उपस्थित कर रही है। प्रत्येक व्यक्ति को इस पुस्तक से प्ररेणा तथा प्रकाश मिलेगा।

एक प्रवक्ता की भाँति श्री हरिदत्त शर्मा जहां विषय का गंभीरतापूर्वक गूढ़ विवेचन करते हैं, वहीं वह विषय को सरल तथा आकर्षक बनाने के लिए स्थान-स्थान पर कहानियों, किस्सों तथा अनेकानेक कथाओं का सहारा भी लेते हुए चलते है। सच तो यह है कि कथाओं के द्वारा इतनी सरलता से लेखक ने विषय को पग-पग पर रूचिकर और बोधगम्य बना दिया है कि लगता ही नहीं कि लेखक किसी नीरस विषय को अपने हाथ में लिए हुए हैं। शेरो-शायरी का भरपूर उपयोग भी पुस्तक में किया गया है। जो लोग श्री हरिदत्त शर्मा के प्रभावशाली भाषणकर्ता तथा प्रवचनकर्ता रूप से परिचित हैं, वे इन व्याख्याओं में उनके इस रूप की बहुत अच्छी झलक महसूस करेंगे। यह लेख ऐसे हैं जिन्हें पढ़कर लगता है, मानो हजारों लोगों की भीड़ में श्री हरिदत्त शर्मा जी माइक पर – प्रवचन दे रहे हों। श्री हरिदत्त शर्मा जी की यह पुस्तक – इसलिए बहुत मूल्यवान हो गई है क्योंकि इनको एक ऐसे व्यक्ति की लेखनी ने प्रस्तुत किया है, जिसका जीवन अपने आप में मानव धर्म के अनेकानेक – सद्गुणों की खान बन गया है। श्री शर्मा जी हमारे – समय के सर्वाधिक पूजनीय व्यक्तियों मे से हैं क्योंकि उन्होंने अपने निर्लोभी व्यक्तित्व तथा ज्ञान, सादगी और मृदृवाणी से एक ऐसी साधना का पथ चुना हुआ है, जो इस समय अत्यन्त असाधारण रूप से ही देखने में आता है।

“मानव धर्म की खोज” श्री हरिदत्त शर्मा जी की कालजयी कृति है, जिसका महत्व हम संभवतः – इस समय भली प्रकार से न आंक पाएं, किन्तु पचास – वर्ष बाद यदि हमें मनुष्य समाज को सार्थक दिशा प्रदान करने में समर्थ पुस्तकों की आवश्यकता पड़ेगी तो निश्चय ही हम मानव धर्म की खोज के नए संस्करण छपवाने के लिए बाध्य होंगे।
———————————————
1) यह समीक्षा 7 – 14 जनवरी 2002 सहकारी युग, हिंदी साप्ताहिक रामपुर उत्तर प्रदेश में प्रकाशित हो चुकी है।
2) श्री हरिदत्त शर्मा, जन्म 1 जुलाई 1919 मेरठ; मृत्यु 19 अक्टूबर 2009 भैया दूज की रात्रि रामपुर

120 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

मन किसी ओर नहीं लगता है
मन किसी ओर नहीं लगता है
Shweta Soni
आपके शत्रु आपको क्रोध दिला सकते हैं
आपके शत्रु आपको क्रोध दिला सकते हैं
ruby kumari
मुसम्मम इरादा कीजिए
मुसम्मम इरादा कीजिए
मनोज कर्ण
क्यों अपने रूप पर .......
क्यों अपने रूप पर .......
sushil sarna
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
- उसकी आंखों का सम्मोहन -
- उसकी आंखों का सम्मोहन -
bharat gehlot
उठो द्रोपदी....!!!
उठो द्रोपदी....!!!
Neelam Sharma
" अजनबी "
Dr. Kishan tandon kranti
सरसी छंद
सरसी छंद
seema sharma
किताबें
किताबें
अमित मिश्र
बेशक प्यार उनसे बेपनाह था......
बेशक प्यार उनसे बेपनाह था......
रुचि शर्मा
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
साइड इफेक्ट्स
साइड इफेक्ट्स
Dr MusafiR BaithA
वर्तमान में लोग success के पीछे नहीं बल्कि sex के पीछे भाग र
वर्तमान में लोग success के पीछे नहीं बल्कि sex के पीछे भाग र
Rj Anand Prajapati
मरने पर भी दुष्ट व्यक्ति अपयश ही पाते
मरने पर भी दुष्ट व्यक्ति अपयश ही पाते
अवध किशोर 'अवधू'
"अल्फाज दिल के "
Yogendra Chaturwedi
सत्य की खोज
सत्य की खोज
MEENU SHARMA
‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ के 6 यथार्थवादी ‘लोकगीत’
‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ के 6 यथार्थवादी ‘लोकगीत’
कवि रमेशराज
3595.💐 *पूर्णिका* 💐
3595.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
आधुनिक युग में रिश्ते, प्रेम, शादियां, परिवार
आधुनिक युग में रिश्ते, प्रेम, शादियां, परिवार
पूर्वार्थ देव
बचपन
बचपन
Shyam Sundar Subramanian
बेशक zamaane में होंगे
बेशक zamaane में होंगे
ruchi sharma
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Santosh kumar Miri
काव्य का राज़
काव्य का राज़
Mangilal 713
अपनी ज़मीन से कर ले तू यारी
अपनी ज़मीन से कर ले तू यारी
Jyoti Roshni
चुनावी घोषणा पत्र
चुनावी घोषणा पत्र
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*चलती सॉंसें मानिए, ईश्वर का वरदान (कुंडलिया)*
*चलती सॉंसें मानिए, ईश्वर का वरदान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
राज जिन बातों में था उनका राज ही रहने दिया
राज जिन बातों में था उनका राज ही रहने दिया
दीपक बवेजा सरल
ग़ज़ल(ये शाम धूप के ढलने के बाद आई है)
ग़ज़ल(ये शाम धूप के ढलने के बाद आई है)
डॉक्टर रागिनी
Loading...