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2 Dec 2024 · 1 min read

धरा और गगन

मिलन को व्याकुल धरा है व्योम से क्यों ,
बाँह फैलाए खड़े हिमगिरी बेचारे ।
व्योम की गर्वोक्ति भी यूं ही नहीं है,
चरण धोने को हैं आकुल जलधि सारे ।।

गगन भी प्यासा है अधरों का धरा के,
चाँद सूरज पवन इन सब को हरा के ।
चाँद तारे चाँदनी की एक चादर में समेटे,
रात दिन जल वायु सुख दुख वो धरा के ।।

पीर बनकर बह रहे हैं अश्रु सावन के बहाने,
लग रहे ज्यों प्रिय धरा के विरह की अग्नि बुझाने ।
पर मिलन संभव नहीं क्षिति का गगन से,
फिर भी अंबर ढूंढता निशि दिन बहाने ।।

मिल रहा है व्योम ज्यों क्षिति से क्षितिज पर,
अरुण की लोहित शिखाओं के सहारे ।
प्रिय मिलन को व्योम का इतना समर्पण,
चाँदनी से चरण जलनिधि के पखारे ।।

प्रकाश चंद्र रस्तोगी
17 समर विहार, आलमबाग, लखनऊ
Ph. 8115979002

Language: Hindi
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