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11 Jun 2024 · 1 min read

मुक्तक

बार बार मुख अपना धोते
दर्पण देखें फिर वो रोते
भूल हुई है जो सदियों में
बारी बारी सबसे कहते।।

संतानों का दोष नहीं है
यूं ही तो संतोष नहीं है
कुछ करनी तो अपनी होगी
तभी यहां जय घोष नहीं है ।।

दिन के सपने अपने रहते
दिल से अपने सब कुछ कहते
दौड़ो, भागो, नापो दुनिया
तब तारे अंबर में सजते।।

कैसे भूलें उन भूलों को
कैसे भूलें उन शूलों को
बिंधी पड़ी हैं सदियां सारी
तुमने रौंदा जब फूलों को।।

सूर्यकांत

Language: Hindi
167 Views
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