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10 Jun 2024 · 1 min read

“लिखने से कतराने लगा हूँ”

डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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बात ऐसी नहीं कि
मैं पढ़ता
नहीं हूँ
मुझे अच्छी लगती है
किसी और की
कविता पढ़ना
किसी के विचारों को
मनन करना
किन्हीं के कहानियों में
डूब जाना
बहुत कुछ सीखने को
मिलता हैं
सीखने की उम्र
अंतिम साँसों तक रहती है
मैं तो आजन्म
तक अपने को
विध्यार्थी मानता हूँ
कोई मेरी गलतियों को
इंगित करता है तो
उसे तत्क्षण सुधार लेता हूँ
परन्तु डर लगता है
मुझे कमेंट करने से
प्रशंसा ,प्रशस्ति और
शुभकामना देने से
आपकी अच्छी लेखनी है
आप अच्छे लिखते हैं
लोग आपकी कृतियों की
सकारात्मक समालोचना करते हैं
कोई तारीफ आपकी करता है
कोई ढाढ़स ,सांत्वना
प्रशंसा की झड़ी लगता है
पर उनकी अकर्मण्यता तो देखिये
वे निष्ठुर बने बैठे
रहते हैं
वे अपने चाहने वालों को
आभार ,स्नेह ,प्यार का
पैगाम तक नहीं
देते हैं
इसीलिए मैं आज कल
कुछ डरने लगा हूँ
कमेंट ,टिप्पणी,बधाई ,शुभकामना
“लिखने से कतराने लगा हूँ” !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका ,झारखंड
भारत
10.06.2024

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