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2 Jun 2024 · 1 min read

कविता

कविता (दुर्मिल सवैया )

कविता न छुए दिल को जब से तबसे न कहो उसको कविता।
रस हो जिसमें मदमस्त करे तब जान उसे कविता सरिता।
जिसमें बहता मधु सिन्धु सदा लहरें उठती उर में कसती।
कविता जिसमें रस प्यार दिखे वनिता बन के सब में रहती।

कविता दिन रात जगा करती यह स्वप्निल स्नेहिल नव्य सदा।
यह खेल सदा रचती रहती कहती सबसे लिख काव्य सदा।
रच दे हर मानव शांति प्रथा कवि वृति अमोल रहे सब में।
सब प्रेम प्रधान बने जग में प्रिय मोहक काव्य खिले रग में।

कविता!तुम गंग सुधा जल हो प्रिय अमृत रंग सदा तुम हो।
तुझको लिखता पढ़ता कवि जो वह शारद अंग सदा शिव हो।
नहिं किस्मत में जिसके कविता वह हीन सदैव निराश मना।
वह रोवत धोवत मानुष है खुद नोंचत आपन बाल घना।

डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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