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2 Jun 2024 · 1 min read

ज़ख्म पर ज़ख्म अनगिनत दे गया

चैन ओ सुकून दिल का मेरे ले गया
ज़ख्म पर ज़ख्म दिल को अनगिनत दे गया

लूट ले गया वो सारी खुशियाँ मेरी
दर्द ए गम सीने में मेरे रह गया

छोड़ कर दूर हमें जा रहा था वो जब
प्यार बन अश्क नयन से मेरे बह गया

प्यार की जगह नफरतों ने घर कर लिया
प्यार था इसलिए चुपचाप सब सह गया

अब न देखेंगे मुड़कर हम तुमको कभी
जाते-जाते न जानें क्या क्या कह गया

बड़ी नाजों से दिल में घर बनाया था
एक ही पल में मकान मेरा ढह गया

प्रेम उसे भी तो था मुझसे बेपनाह
समझ में न आया छोड़ किसकी शह गया

कोर्ट का नोटिस थमाया जब हाथ में
जीवन का यह सफ़र जैसे थम सा गया

लब थरथराए मगर कुछ भी न कह सके
मैं खड़ा का खड़ा सख़्त पत्थर बन गया

जानें वाले को हम रोक सकते नहीं
जिसे छलना था हमें, वह हमें छल गया

-स्वरचित मौलिक रचना-राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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