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31 May 2024 · 1 min read

आखिरी खत

खत नहीं
ये आखिरी पैगाम था
उस प्रेमी का लिखा,
अपने प्रेयसी
यही वो अंतिम शब्द था |

पहुँच जाये उसके
प्रेयसी को ये खत,
यही उस यतीम प्रेमी
का मन था |

पहले तो खत देख हिचकिचायी
प्रेमी का नाम सुन,
खत को सीने से लगाई |

खुद नही आया मिलने
खत क्यों भेजा उसने,
ये सोच थोड़ी रिझाई |

खत पढ़ स्तब्ध हैं
अफसोस में खोयी,
आज प्रेयसी पलक हैं |

सपने दिखाये थे
जिसने हजार,
आज वो खुद
सपना बन गया हैं |

उस यतीम प्रेमी ने
समाज (बिरादरी) के सामने,
खुद को लाचार बताया हैं |

आखिरी खत का
ये आखिरी पैगाम,
आखिरी अहसास
लेकर आया हैं |

खत पढ़
उसे खुद पे हँसी आयी,
में भी पागल
किस किस्सेबाज़ से दिल लगायी |

जिसे प्रेम का मतलब
नहीं पता,
में उसे प्रेम का
मतलब सिखाने चली थी |

न प्रेम यतीम
न यतीम प्रेमी था
बस दूर होना था ,
उसे तो एक अफ़साना भी
तो जरूरी था |

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