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31 May 2024 · 1 min read

नील पदम् के दोहे

मनवा आज उदास है, जैसे बीच मसान,
जगा जागरण जोग सा, जाग गया इंसान ।

ज्ञानी ये कहते खर्च कर, जैसे बहाया पानी,
लेकिन एक दिन आएगा, लेगा बदला पानी ।

जाग रहा है रात को, जाग रहा है दिन,
साँसों की चिंता नहीं, पैसे रहा है गिन।

कोई महल न काम का, इतना लीजो जान,
यहीं धरा रह जाएगा, निकल जायेंगे प्रान ।

साँसें भरी हों आस में, तो सब कुछ होगा पास में,
जब सब कुछ होगा पास में, तब भी होगा आस में ।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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