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28 May 2024 · 1 min read

नयी कविता

किसी को देखकर सोंचा,
लिखूं एक सुन्दर कविता आज।
सजाऊँ अलंकारों से उसको,
छेड़ूँ फिर कोई मधुर साज।

वक़्त बीत गया किसी की,
तारीफ में गीत गाने का।
किसी को जी भर हंसाने का,
और किसी रूठे को मानाने का।
दिल में आज फिर आया,
की पहनूं मै आज कवी का ताज,
किसी को देखकर सोंचा,
लिखूं एक सुन्दर कविता आज।

देखा था उसको एक छण,
यूँ ही जरा रुक कर के।
जाना था मैंने उसको कुछ,
थोड़ी सी बात कर के।
समझ पाया था मै तब,
उसके कुछ अधूरे से राज।
किसी को देखकर सोंचा,
लिखूं एक सुन्दर कविता आज।

झाँका था मैंने कुछ तो,
उसकी आँखों की गहराइयों में।
पाया था मैंने खुद को अकेला,
उन सूनी राहों की तन्हाइयों में।
मेरे अतीत से तब जैसे,
टकराई हो कोई आवाज़।
किसी को देखकर सोंचा,
लिखूं एक सुन्दर कविता आज।

बड़ी मासूम सी चंचल,
अदाएं शोख हैं जिसकी,
बड़ी हिम्मत से हैं रहती,
करूँ क्या बात मै उसकी।
बनाया हैं उसे कुछ ख़ास,
जिसे खुद पर हैं बड़ा नाज़।
किसी को देखकर सोंचा,
लिखूं एक सुन्दर कविता आज।

किसी ने खोला हैं देखो,
मेरे अतीत की यादों का ताला।
छेड़ा है तराना दिल का,
रंगो में डूबी वो मधुर बाला।
उठा के कलम मैंने किया,
अब अपने गीतों का आगाज।
किसी को देखकर सोंचा,
लिखूं एक सुन्दर कविता आज।

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