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26 May 2024 · 1 min read

भाग्य

कभी तो भाग्य अपना भी जगेगा।
तभी सत्कर्म भी सारा फलेगा ।।

किया हमने कभी उपकार जिन पर ।
वही फिर याद सब बनकर जगेगा ।।

नहीं समझा कहा अपना जिसे वह।
बना दुश्मन हमें वह यूँ छलेगा ।।

बहुत से स्वप्न जो मन में दबे हैं ।
वही धर रूप फूलों – सा खिलेगा ।।

बहुत ही पीर इस मन में दबी है ।
नहीं फिर होंठ कब तक ये हिलेगा ।।

लगा ताला यहाँ मुख पर सभी के।
कभी जनमन मुखर को ये खलेगा ।।

चलो अब काम भर दृढ़ता करें हम ।
तभी यह भाग्य सुन्दर-सा जगेगा ।।

वही छवि आज मनहर है लुभाती ।
मुझे वह रूप दर्शन कब मिलेगा।।

डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली

Language: Hindi
264 Views
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