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24 May 2024 · 1 min read

तन्हा था मैं

तन्हा था मैं
अकेला था मैं
फिर क्यो मैं, दूसरो को
अपना मानता रहा।
पागल था मैं।
जो बेवजहा दूसरो को
खुदा मानता रहा।
खुदा वो मुझमे भी था।
फिर भी मैं
दूसरो मे ही झाकता रहा।
जैसे आईना रखके सामने
मैं खुद को ताकता रहा।
जब पता चला
के वो वहम था मेरा।
मैं बेवजहा ही
कही ओर झाकता रहा।
खुदा कैसे मिलता जब मैं
गलत जगह ही ताकता रहा।
“”””**””””**””””**””””**”””

Language: Hindi
229 Views
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