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20 Jun 2024 · 1 min read

उसकी फितरत थी दगा देने की।

उसकी फितरत थी दगा देने की।
फिर इल्म यह की किसी को पता नही।।
मैने जानकर हज़ारो धोखे खायें ‘
फिर भी आह नही की ‘कोई अपना छूट न जाये।।
मैं देखता रहा सबकुछ मेरे सामने होते हुए।
लगता था मुझको की शायद वह लौट कर आये।
वक्त गुजरता रहा और सफ़ेद होते बाल कुछ सिखाने लगे।
मैं अब भी मै ही था।
जो मिलने आये वो बदल कर आयें।।

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