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23 May 2024 · 1 min read

क्या लिखूँ

कुछ ख़्वाबो को आज लिखूँ
बीते कल का बयान लिखूँ

छूट गई जो गलियाँ सारी
उन गलियों के नाम लिखूँ

सरकती जा रही आहिस्ता
ज़िंदगी ,इसकी क्या चाल लिखूँ

फ़ना यादें हैं ,कश्मकश में , मैं
क्या फिर से इस बार लिखूँ

पढ़नेवाले वाले अगर मिलें कहीं
“सागरी” , क़िस्सा मैं हरबार लिखूँ

डा राजीव “सागरी”

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