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22 May 2024 · 1 min read

उलझी उलझी सी रहे , यहाँ वक़्त की डोर

उलझी उलझी सी रहे , यहाँ वक़्त की डोर
मिलता भी इसका नहीं, कहीं ओर या छोर
कहीं ओर या छोर, पकड़ इतनी है पक्की
हाथ इसी का थाम, चले साँसों की चक्की
कहे ‘अर्चना’ बात, वक़्त पर ये यदि सुलझी
तो ये भी है सत्य, वक़्त पर ही ये उलझी

डॉ अर्चना गुप्ता
22.05.2024

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