शीर्षक -अपने स्वार्थ

शीर्षक – अपने स्वार्थ…
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अपने स्वार्थ सच तो यही जीवन है।
बचपन के भाई बहन बस अलग है।
जमीन जायदाद पैसा अपने स्वार्थ हैं।
न भावनाएं न सोच सब हमारा हैं।
भाई भाभी तो बस चिताएं जलाने को हैं।
बहनें हिस्सा शादी में खर्च वो दायित्व हैं।
घर की देखभाल उससे जुड़ी यादें बेकार है।
अपने स्वार्थ और फरेब के रिश्ते हो चुकें हैं।
बस हमारे जीवन में सबकुछ पैसा बना है।
उपदेश और सत्संग कथा में रौब दिखाना हैं।
ईश्वर सब देख कर समय का इंतजार करता है।
कर्म का फल कुदरत और अपने स्वार्थ होते हैं।
आओ एक बार अपने स्वार्थ को भूलते हैं।
बस एक दूसरे को सहयोग कर गले लगाते है।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र