Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 May 2024 · 1 min read

जिन्दगी एक दौड

खुद को साबित करते करते यूहीं उम्र बीत जाती हैं ।
वक्त बहुत लग जाता है,
जब यह दुनिया समझ में आती है।
दोहरे चरित्रो की थाह,
कहाँ समझ में आती है,
खुद को साबित करने में
उम्र बीत जाती है ।
लोग खुद को नेक और
भगवान के बन्दे कहते हैं,
तंग दिल है इनका
और विष से भरे है सब,
इनको कहाँ कभी
इंसानियत पसंद आती है ।।
हर राह में पत्थर है
लेकिन चलना तो लाज़िमी है ,
ठोकरे खा कर ही तो
चलने की समझ आती है ।
मैं कदम चलता रहा
और जमाना चाल चलता है ।
सत्य क्या है यह बात
आखिर ‘सत्य’ को समझ आ ही जाती ह।।
खुद को साबित करने में उम्र बीत जाती है ।

157 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from अश्विनी (विप्र)
View all

You may also like these posts

Maine
Maine "Takdeer" ko,
SPK Sachin Lodhi
*दादा जी ने पहना चश्मा (बाल कविता)*
*दादा जी ने पहना चश्मा (बाल कविता)*
Ravi Prakash
पल पल जी रहा हूँ
पल पल जी रहा हूँ
हिमांशु Kulshrestha
शीर्षक- पूछो नहीं तुम यह बात हमसे
शीर्षक- पूछो नहीं तुम यह बात हमसे
gurudeenverma198
"विजयादशमी"
Shashi kala vyas
Prastya...💐
Prastya...💐
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
आनंद
आनंद
Rambali Mishra
आसाँ नहीं है - अंत के सच को बस यूँ ही मान लेना
आसाँ नहीं है - अंत के सच को बस यूँ ही मान लेना
Atul "Krishn"
मेरा था तारा   ...
मेरा था तारा ...
sushil sarna
🙅जय जय🙅
🙅जय जय🙅
*प्रणय प्रभात*
*** हम दो राही....!!! ***
*** हम दो राही....!!! ***
VEDANTA PATEL
भूल जाऊं तुम्हें...!
भूल जाऊं तुम्हें...!
शिवम "सहज"
देश हमे देता है सबकुछ हम भी तो कुछ देना सीखे, समाज परिवर्तन
देश हमे देता है सबकुछ हम भी तो कुछ देना सीखे, समाज परिवर्तन
ललकार भारद्वाज
**जिंदगी बोझ समझ ढोते रहे**
**जिंदगी बोझ समझ ढोते रहे**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जिंदगी हमेशा इम्तिहानों से भरा सफर है,
जिंदगी हमेशा इम्तिहानों से भरा सफर है,
Mamta Gupta
4436.*पूर्णिका*
4436.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ठहर कर देखता हूँ खुद को जब मैं
ठहर कर देखता हूँ खुद को जब मैं
सिद्धार्थ गोरखपुरी
आधुनिकता का नारा
आधुनिकता का नारा
Juhi Grover
दुनिया में हज़ारों हैं , इन्सान फ़रिश्तों  से  ,
दुनिया में हज़ारों हैं , इन्सान फ़रिश्तों से ,
Neelofar Khan
हाँ देख रहा हूँ सीख रहा हूँ
हाँ देख रहा हूँ सीख रहा हूँ
विकास शुक्ल
ज़िंदगी में सब कुछ करना, मग़र अपने दिमाग़ को
ज़िंदगी में सब कुछ करना, मग़र अपने दिमाग़ को
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
दास्तान-ए-दर्द!
दास्तान-ए-दर्द!
Pradeep Shoree
मुकद्दर
मुकद्दर
Phool gufran
श्याम तुम्हारे विरह की पीड़ा भजन अरविंद भारद्वाज
श्याम तुम्हारे विरह की पीड़ा भजन अरविंद भारद्वाज
अरविंद भारद्वाज ARVIND BHARDWAJ
हमेशा एक स्त्री उम्र से नहीं
हमेशा एक स्त्री उम्र से नहीं
शेखर सिंह
पूँजी, राजनीति और धर्म के गठजोड़ ने जो पटकथा लिख दी है, सभी
पूँजी, राजनीति और धर्म के गठजोड़ ने जो पटकथा लिख दी है, सभी
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
शिक्षकों को प्रणाम*
शिक्षकों को प्रणाम*
Madhu Shah
प्रेम होना ही सबसे बड़ी सफलता है
प्रेम होना ही सबसे बड़ी सफलता है
पूर्वार्थ
"रियायत"
Dr. Kishan tandon kranti
राह नहीं मंजिल नहीं बस अनजाना सफर है
राह नहीं मंजिल नहीं बस अनजाना सफर है
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
Loading...